Thursday, April 29, 2010

रिवालसर में स्नान

प्रिय Readers,
शिमला की थकावट भरी यात्रा के बाद अगले ही दिन डोला और माणा जैसे मित्रों ने रिवाल्सर जाने की जिद की। उनकी वाणी मे इतना तेज था कि न कह्ने की कोई गुंजाईश ही न थी। माणे ने मनीश से डिजीटल कैमरा भी ले लिया। और डोला अपने खाते से मेरे, माणे एवं योगी के लिये 200-200 रुपये भी ले आया। योगी भाई आन्टी आदिको लेकर पह्ले ही रवाना हो गये जबकि हम कुछ देर बाद एक निजी बस मे वाया कॉलोनी नेरचौक के लिये निकल पड़े। माणे ने विडियोग्राफ़ी एव फोटोग्राफी का सिलसिला शुरु कर दिया। कुछ देर मे ही हम नेरचौक पहुंच गये। भूखभी लगने लगी थी। इसलिये हमने एक ढाबे में पनीर पकौड़े खाने का निश्चय किया। तत्पश्चात हम खीरे खाते हुए एक निजी बस में चढ़ गये। परिचालक ने हमें छ्त पर सफ़र कराने का आश्वासन दिया था लेकिन उसने वादा नहीं निभाया। हालांकि कलखर से चंद किलोमीटर पीछे हम स्वयं ही बस पर चढ़ गये।ठंडी- ठंडी बयार चल रही थी, जिससे शरीर स्फ़ुर्तिवान हो रहा था। हमने मण्डी की हसीन वादियों को कैमरे मे कैद किया।गाड़ी की रफ़्तार मध्यम थी। योगी का फोन बार बार आ रहा था। वो रिवाल्सर पहुंच गया था। कुछ देर में हम भी रिवाल्सर पहुंच गये। रिवाल्सर से आधा किलोमीटर पीछे ही बस रोक दी गयी और हम बस की छ्त से छ्लांग लगाकर शुटिंग करते करते मजिंल की तरफ़ बढ़ने लगे।
योगी भाई गेट पर हमारा इन्तजार कर रहे थे। भीड़ को चीरते हुए कुछ ही देर में ही हम मेन गेट पर पहुंच गये।जहांसे योगी भाई भी हमारे साथ हो लिये।
बैसाखी के स्नान एवं मेले के कारण रिवाल्सर में जनसैलाब उमड़ पड़ा था।लोग झील में स्नान करके अपने पापधोने को आतुर हो थे। माणा, डोला, सुर्या,योगी एवं मैंने भी झील के पानी को बाहों मे भर लिया। काफ़ी गर्मी केकारण झील का पानी स्नान के लिये अति उत्तम हो गया था।
इतने में आन्टी (हमारी मकान माल्किन), नानी (आन्टी की माँ) , श्रेया एवं अप्पु (आन्टी की सुपुत्रियां) और उदय (आन्टी के भाई का लड़का जिसे डोला ने उदंड बालक की संज्ञा दी) भी वहां पहुंच गये ।चुंकि मुझे तैरना नही आताथा, इसलिये मैं किनारे तक ही सीमित रहा । लेकिन माणा एक मझें हुए तैराक की तरह झील में कूद पड़ा। कुछ हीपल मे माणा डूबने लगा और उसने योगी भाई को अपनी ओर खींचा। खैर जैसे तैसे माणे ने अपने आप को सम्भाला। योगी, डोला एवं सुर्या ने कुछ गोते लगाये। कुछ देर मे हम स्नान से निवृत हो गये और झील से बाहरनिकल आये। हम अतिरिक्त कच्छा भी नहीं ले गये थे इसलिये गीले कच्छे को निचोड़कर ही पैंट पहन ली।
रिवाल्सर का वन्य प्राणी विहार हमें आकर्षित कर रहा था । इसलिए हम 2 रु की टिकट लेकर वन्य प्राणी विहार मेघुस गये। वहां बहुत कम जानवर थे। लेकिन फिर भी हमने जमकर फोटोग्राफी की ओर डॉक्युमेन्ट्री फ़िल्मे बनाई।
अब आन्टी हमारे ग्रुप की लीडर थी। आन्टी हमे अपने रिश्तेदार के भवन मे ले गयी जो शायद नगर पन्चायत काकार्यालय था । ठंडा पानी एवं चाय पीने के बाद हम वहा से निकल पड़े।
आन्टी की सलाह पर हम लंगर का लुत्फ़ उठाने गुरुद्वारे की ओर निकल पड़े। गुरुद्वारे में काफ़ी भीड़ थी। पर जैसेतैसे हम कोने मे बैठ गये। मेरे अलावा बाकि सबने सिर ढकने के लिये कपड़े का बन्दोबस्त कर लिया था । जिसकारण मुझे आत्म-ग्लानि का अहसास हो रहा था। विवश होकर मुझे योगी भाई को उनके रुमाल के दो टुकड़े करनेके लिये प्रेरित करना पड़ा।
माणा, योगी, सुर्या, आदि जल्दि ही लंगर खाकर बाहर निकल गये थे जबकि मुझे और डोले को थोड़ी देर हो ग़यी थी।
फ़्री का खाना खाकर हम फ़िर से घूमने निकल पड़े। हालांकि अब टांगे और शरीर जवाब दे रहे थे। फोटोग्राफी करतेकरते हम एक बौद्ध मंदिर पहुंच गये। मंदिर में लगे बेलनाकार डब्बों (बौद्ध मान्यताओ के अनुसार इन्हे घुमाने सेपाप कम होते है) को घुमाकर हमने मंदिर के भीतर प्रवेश किया। मंदिर के भीतर बौद्ध लामा भग्वान बुद्ध की भक्तिमे लीन थे। वे अपने वाद्य यन्त्रो से दिव्य ध्वनि उत्पन्न कर रहे थे । हम मन्त्र-मुग्ध हो उठे । एक बौद्ध लामा नेहमे प्रसाद दिया। सचमुच मन्दिर का वो वातावरण दिव्य वातावरण था।
मन्दिर के परिसर में हमें एक विदेशी नागरिक मिल गया। डोले ने उसके साथ साक्षात्कार किया जिससे पता चलाकि वो एक ब्रिटिश नागरिक है और छुट्टियां बीताने जनवरी माह से भारत मे ही है।
डोला हर विदेशी नागरिक को फोटो खींचने के लिये आमंत्रित कर रहा था । पर दो तीन बार नकारात्मक जवाबमिलने के बाद ही डोला बाज आया ।
शाम ढल चुकी थी। योगी आन्टी आदि सेन्ट्रो में बैठकर सुंदरनगर के लिये रवाना हो गये। हम बस के इन्तजार मेठुलने लगे। करीब एक घंटे बाद बस मिली। रात आठ बजे तक हम सुंदरनगर पहुंच चुके थे। (

Thursday, December 31, 2009

My first ever blog

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